"सिर साठें रूंख रहे, तो भी सस्तो जाण" कुछ याद करें उस बलिदानी - अमृता देवी की अमर कथा जो जूझ गयी तलवारों से, कटते पेड़ों की देख व्यथा आखिर राजा भी नतमस्तक, टपकी टप अश्रुधारा वृक्षों का रक्षण परिपोषण, पावन कर्त्तव्य हमारा #खेजड़ली_बलिदान_दिवस
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