उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः। न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः॥ अर्थ: केवल इच्छा करने से काम नहीं बनते, बल्कि मेहनत करने से ही काम पूरे होते हैं। जैसे सोए हुए शेर के मुंह में हिरण अपने आप नहीं घुस जाते।
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