(१/२) अर्ज़ है .. मसरूफ़ तेरे दीदार ए ख़्वाब में कुछ इस तरह थे, तू आ के चला गया, हमहे मालूम तक ना हुआ… एहसास दिल को; अब तक; तेरे यहाँ होने का है, ज़र्रा ज़र्रा फ़ना हुआ; मालूम तक हम्हे ना हुआ…
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