हरिशंकर परसाई की तट खोज 1975 में प्रकाशित हुई थी और इसी उद्देश्य से लिखी गई होगी कि अब इस समाज में कोई और शीला न हो लेकिन ये निष्ठुर समाज आज भी वैसा ही है कुछ नहीं बदला ।
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